पुत कुपात्र हो सकता है माता कुमाता नहीं
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मैंने तुझे स्तनपान करवाया है! राजा जोगी अगन जल़, ज्यांरी उलटी रीत। डरता रैजो फरसराम, (ऐ)थोड़ी पाल़ै प्रीत।। यह सुभाषित जिस किसी कवि ने कहा है वो अनुभूत करके कहा है।जब हम मध्यकाल का इतिहास खंगालते हैं तो ऐसे क्रूर अध्याय हमारे सामने आते हैं जिन्हें पढ़कर या सुनकर हमारा हृदय द्रवित हो उठता।पश्चिम राजस्थान में ऐसे छोटे-मोटे कई सामंत हुए हैं जिन्होंने अपने पूर्वजों की पुनित परंपराओं को तिलांजलि देकर ऐसे कलुषित अध्याय सृजित किए जिनका कलंक अभी तक नहीं मिट पाया है। ऐसा ही एक किस्सा है झांफली गांव की रांणां माऊ व कोटड़ा के राणा दुर्जनसाल का है। कोटड़ा सिद्ध मल्लीनाथजी के वंशजों का ठिकाणा है।जहां कभी मित्र भाव को सम्पोषित करने वाले राणा बाघजी हुए थे।उन्हीं की वंश परंपरा में धनराजजी हुए और उनके माधोसिंहजी।माधोसिंहजी के दुर्जनसाल हुआ। आगे का किस्सा लिखूं उससे पूर्व रांणां माऊ का परिचय देना समीचीन समझता हूं। कूंपा मल्लीनाथोत ने बारठ आलनसी को हड़वेचां गांव इनायत किया था। इस संदर्भ में एक पुराना दोहा दृष्टव्य है-- जुग जासी रैसी जरू, धर मालावत नाम। कुम्पे दियो कोड सों गढपत हड़वेचा गांम।। इन्हीं