मगरा आज भी कम नहीं

 बागी मोकमसिंह मगरा



साफा स्टाईल 

 
पारम्परिक साफे में बडे भैया तणेराजसिंह भाटी


साफा / गोखरू 

मगराई ठाठ में तेजमाल सिंह मगरा साफे के साथ गोखरू 

Magra attitude


पारम्परिक साफा कान में गोखरू जैसलमेरी पहनावे मे तेजमालसिंह मगरा

एशियाड़ घूड़सवार / Dysp 


एशियाड विजेता जितेन्द्र सिंह भाटी मगरा

Topper Student Magra





*मगरा अब भी कम नहीं*
रामसिंहोत भाटियों के पूरे 24 गांव जिसमें *बईया , झिंझिनियाली के साथ-साथ  *मगरा* का भी उल्लेख एक अलग अंदाज मे किया जाता है । ऐसा इसलिए भी है कि मगरा  बसिया क्षेत्र का बहुचर्चित गांव है । एक ऐसा भी समय था जब मगरा के चर्चे हिन्द और सिन्ध  दोनों में होते थे । मगरा हर क्षेत्र में आगे था , हालांकि उस समय पढ़ाई को ज्यादा महत्व नहीं था ।   पाकिस्तान के छोड़ से लेकर पोकरण तक मगरा का रूतबा कायम था । मगरा के लोगों में यह एक खासियत प्रमूख थी कि जो भी ठान लेते थे उसको पूरा करके ही दम लेते थे । मगरा इसलिए भी अलग है कि यहां के भाटी अपनी परम्परा को अभी तक नहीं भूले हैं ,  गोल जैसलमेरी पगड़ी ,   कान में गोखरू   पहन कर जब वो चलते है , तो उनका अंदाज ( *Attitude*)  कुछ अलग ही लगता है । उनके चलने की स्टाईल भी कुछ अलग है ,  वह जब भी बोलते हैं तो आत्मविश्वास  ( *Confidence*) से ही बोलते है ।  हालांकि कुछ लोगों ने दक्षिणी तथा उतरी बसिया क्षेत्र के भाटियों को  *डाकूओं* की संज्ञा दी है ,  लेकिन उन लोगों  को डाकू बनने का भी कारण जानना चाहिए । इन *डाकूओं* का भी एक सिध्दांत था कि वो कभी भी  गरीब को नहीं लूटते थे । जब किसी वारदात को अंजाम देते थे , उससे पहले चुनौती ( *Challenge*) देकर ही अगला कदम उठाते थे । अखेराज के पुत्र *किशनदास जी* के वंशज मगरा में रहते है । हरसाणी बसाने में *किशनदासजी* का अहम योगदान था , लेकिन हम इससे योगदान की संज्ञा नहीं दे सकते , क्योंकि परिवार में कोई योगदान नहीं होता । आज जैसे - जैसे समय बदल रहा है , उसी प्रकार वंशावली में भी दूरियां बढ़ती जा रही है । लेकिन सही दृष्टि से देखा जाए तो हम अब भी एक परिवार  ही है ।  जब मगरा का नाम आता है तो अपने आप ही 🦁 *मोकमसिंह भाटी* 🦁  का नाम जूड़ना जायज है ।  इस  नाम के बिना मगरा का उल्लेख करना *बिन ब्रह्माण विवाह* के बराबर है । उस शख्स को *कानून को चकमा* देने में महारथ हासिल थी । कईं बार उनको पकड़ने मे 👮 *कानून* को कईं बार नाकामयाबी का सामना करना पड़ा । कंधे पर  *बंदूक* हाथ में *लगाम* और घोड़े पर *सवार* उनकी छवि आज भी प्रतीत होती हैं । वर्तमान में भी मगरा के वांशिदों को घूडसवारी का बड़ा शौक है , 30% बंदे आज भी घूड़सवारी में व्यस्त है । वर्तमान में *हिन्दुस्तान* की जुबां पर एक नया नाम उभर आया है , वो है 
🏇 *जितेन्द्रसिंह भाटी*  🏇 भारत को एशियाड़ खेलों में 🏅 पदक दिलाकार इस बंदे ने देश को‌ गौरवान्वित किया है । इससे *मगरा* 🚩 और *अखेराजोत भाटियों को*  एक विशिष्ठ पहचान मिली है । और हाल ही में खिलाडियों के सम्मान हेतु सरकार ने उन्हे *Dysp* के पद पर सुशोभित किया है ‌। जो हमारे लिए बड़े गर्व की बात है । जी हां आपने सारांश सही पढ़ा है । *मगरा अब भी कम नहीं* क्योंकि मगरा शिक्षा के क्षेत्र में भी अव्वल रहता है । मगरा के कईं युवा प्रशासनिक सेवाओं में कार्यरत्त हैं , और अधिकांश युवा तैयारी में लगे हुए है । थल सेना , वायु सेना , पटवारी , कांस्टेबल की तैयारी बड़े उत्साह से कर रहे हैं । बोर्ड की परिक्षा में छात्र *छैलसिंह S/O डूंगरसिंह* ने *98%* अंक हासिल करके अपने गांव का नाम रोशन किया है । यह हमारे लिए बहुत गर्व की बात है । वैसे मगरा के लिए यह शब्द संक्षिप्त में लिखे गये है पूर्ण जानकारी आप हमारी वेबसाईट पर पढ़ सकते हैं 🏇👏💪🏻

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