अहंकार

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अहंकार शब्द कान में पडते ही हर भारतवासी का ध्यान रावण की ओर चला जाता है। हर साल उसका पुतला जलाया जाता है। एक सन्देश जन-मानस तक पहुंचाया जाता है कि जीवन अहंकार मुक्त होना चाहिए। ऎसा क्या है अहंकार में अहम् का अस्तित्व ही तो है। अहंकार शब्द में ही एक प्रकार का वजन दिखाई पडता है। जब भी व्यक्ति के मन में स्वयं का महत्व सर्वोपरि हो जाता है, अहंकार परिलक्षित होता है। व्यक्ति जो सोचता है, उसी को सही मानता है। जो करता है, उसी को सही मानता है तथा दूसरों से अपेक्षा भी रखता है कि उसकी बात स्वीकार करें। प्रशंसा सुनने को ही सही मानता है, आलोचना जरा भी सहन नहीं कर सकता। प्रतिक्रियावादी बन जाता है। स्वयं आलोचना के मार्ग पर चलता है। क्रोध तो उसका प्रथम लक्षण हो जाता है। स्वभाव में व्यग्रता आ जाती है। धैर्य और धृति कमजोर पड जाती हैं। प्रमाद भी अहंकारसूचक है। अहंकार से चित्त में अशान्ति पैदा हो जाती है, चिन्तन असन्तुलित हो जाता है, मिथ्या-दृष्टि उत्पन्न होती है। अहंकार एक प्रकार का रोग ही है, किन्तु व्यक्ति को इसका भान भी नहीं होता। बढते अहंकार के साथ उसकी मैत्री घटती जाती है।

अहंकार जीवन को भारभूत कर देता है। व्यक्ति को निम्न स्तर के चिन्तन और कार्यो की ओर आकर्षित करता है। अस्तित्व की अनुभूति से व्यक्ति को दूर ले जाता है। आत्मा की भाषा, ईश्वरीय परिकल्पना उसकी शब्दावली में नहीं हो सकती। हमारे यहां कहा जाता है कि इसका तो माथा भारी हो गया। थोडा विचार करें कि भारी क्या है शरीर भारी है, मन भारी है, विवेक भारी है— इसका अर्थ है व्यक्ति अहंकारी है। जीवन का सुख और आनन्द हल्केपन में है। शरीर को हल्का रखने की सलाह तो सभी देते हैं। आयुर्वेद हो, ऎलोपेथी हो, हल्कापन अच्छे स्वास्थ्य का प्रतिबिम्ब माना जाता है। विचारों का भी हल्का होना उसी तरह आवश्यक है। सरल व्यवहार, सरल आचरण और सरल चिन्तन हल्केपन के सूचक हैं। चिन्तन जितना विवेकसम्मत होगा, जितना वर्तमान के साथ जुडेगा, उतना ही सरल होता जाएगा।

विचारों पर सबसे अधिक भार पडता है हमारी अतीत की स्मृतियों का। हमारा अधिकांश समय इसमें चला जाता है। अतीत के इतिहास को हम नहीं बदल सकते, किन्तु इसके भार से व्यथित रहते हैं। स्मृति को छोडना ही नहीं चाहते। एक भी कोई अच्छा कार्य कर दिया तो बरसों तक उसी का गुणगान करते रहते हैं। यही तो स्मृति का भार है। इसी प्रकार अनागत की कल्पना भी विचारों का भार बढाती है। जो कुछ घटा ही नहीं उसी में चिन्तन अटका रहे, स्वप्न चलते रहें तो क्या कम भारी होते हैं हमारे जीवन-क्रम की गति में बडा अवरोध पैदा कर देती है।

वर्तमान तो वास्तविकता है। इसका भार कुछ नहीं होता। अस्सी प्रतिशत भार तो स्मृति और चिन्तन का होता है। इसमें वातावरण भी कारण बनता है। आपके पास धन-शक्ति अथवा अन्य सामाजिक हैसियत की शक्ति है, शासन की शक्ति है, तो आपकी स्मृतियां एवं कल्पनाएं कुछ भी कर सकती हैं। कोई व्यक्ति यदि झूठ बोलता है अथवा चोरी करता है तो सबसे पहले उसके मन में स्मृति जागृत होती है। उसके बिना आगे नहीं बढ सकता। किसी को आज हलवा खाने की इच्छा भी है तो स्मृति के आधार पर ही है। किसी व्यक्ति को देखते ही क्रोध आता है तो स्मृति के आधार पर।

व्यक्ति को अहंकारी बनाने में स्मृति और कल्पना का विशेष योगदान होता है। ये मन का भार बढाते हैं। विवेक में भटकाव आता है। अहंकार की शक्ति भी कम नहीं होती। उसे कम करने के लिए इससे बडी शक्ति चाहिए। कामनाओं के प्रसरण को रोकने का अभ्यास करने पर वह बडी शक्ति प्राप्त होती है। वैसे तो अहंकार का आभास हो ही जाना चाहिए। इसके बिना इससे छुटकारा कैसे पा सकते हैं

अहंकार-मुक्ति का सरलतम उपाय है कि हम स्वयं के बारे में बात करना बन्द कर दें। अपने सम्मुख किसी को अपनी प्रशंसा भी नहीं करने दें। स्वयं के बारे में चिन्तन महžवपूर्ण है। भावों में इस प्रकार निर्मलता लाई जा सके। अहंकार से कई प्रकार के रोग भी घर कर जाते हैं। उच्च रक्तचाप, ह्वदय रोग, मिर्गी आदि अहंकारजनित रोग होते हैं। भावों में निर्मलता आते ही ये रोग मन्द पड जाएंगे। व्यवहार मृदु बनेगा और फिर से नए मित्र बन सकेंगे। चिन्तन विवेक-युक्त होगा, जीवन सुख-शान्ति से बीतेगा।

पहली आवश्यकता है दृढ संकल्प की। इसके बिना कार्य शुरू ही नहीं होगा यह तो परिवर्तन की पहली सीढी है। केवल संकल्प को ही दोहराते रहे, मन को पक्का करते चले गए तो बिना किसी गहरे चिन्तन के भी परिणाम आ ही जाएंगे। समय लग सकता है।

मन एक बार जागृत हो जाए तो फिर उसे सोने नहीं दें। यह जागरण ही अहंकार की मूच्र्छा से बाहर निकालेगा। जागरण की इस शक्ति को उच्च श्रेणी की बनाना ही जीवन को ऊध्र्वगामी बनाना है। भारी चीज ऊपर नहीं उठती, नीचे ही गिरती है। ऊंचा उठने के लिए अहंकार के भार को कम करके मन के भावों को हल्का बनाना आवश्यक है।



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